hi everyone,
After many years, I got the proper meaning of my names. I have written a story on it.
शिक्षा की सखी लोपा ( सीखा)
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गाँव में नारा लग रहा था-" शिक्षामित्र योजना के तहत सर्वशिक्षा अभियान शूरू कर रहे हैं। सबको समान शिक्षा मिलेगा।" यह बात सुन आठ साल की लोपा ने पढ़ाई को अपना साथी बनाने की मन में ठान लिया। जो लड़की पढ़ाई में अच्छी थी, अच्छे अंक से सबको प्रभावित करती थी, उसे खुद ख़ुद पढ़ाई करना पसंद नहीं था। पता नहीं, नारेबाजी जब लग रही थी, तब वो आवाज़ कुछ तो झकझोर दिया उसके मन में। आँखों में कुछ अठखेलियां करने लगी। चुपचाप रहकर कुछ बातें बड़बड़ाने लगी। उसने अपने आप से जैसे वादा कर लिया कुछ बनकर रहेगी। चिकित्सक बनने को अपने मन को मना लिया। धीरे धीरे वक्त़ बीत गया। वो छोटी सी लड़की से एक युवती बन गई थी। कॉलेज में प्रवेश कर लिया और चिकित्सक बनने के लिए अपनी कलम और स्याही को पढ़ाई में डूबा दिया। पता नहीं, समय के दरिया में छोटी छोटी बातों से जैसे ख़ून, कटी घाव को देख कर बेहोश होने लगी। जब ऐसा बहुत बार हुआ, तो उसने अपना सपना चिकित्सक बनने का त्याग करना चाहा। पर अपनी पढ़ाई पूरी कर आगे बढ़ने की कोशिश करने को ठान लिया। घर की बड़ी बेटी थी, तो जिम्मेदारी से बच पाना मुश्किल था। अपने क़दमों को वो रोकना नहीं चाहती थी। घर के हालात संग ताल मिलाने को तैयार हो गई। जब वो बारवीं में थी, छठी कक्षा की एक लड़के को पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसके अंदर कूट-कूट कर शिक्षा की बीज बो रही थी।
समय के दरिया बहता गया, उसने अपनी ज़िन्दगी को जीने का अंदाज़ सीख लिया था। समय के लहरों संग वो बहती गई। लड़की है, शादी तो करनी पड़ेगी। बस पढ़ाई ख़त्म हुई नहीं कि हाथ पीले कर दिया गया। आस को अपने दिल में दबा कर रखी थी। उसकी हक़ अदा किसी ने नहीं किया। पर कभी ख़ुद से हार नहीं मानी। जब वो पति के संग पुना चली गई, वहां पर अगल बगल के बच्चों को पढ़ाने लगी। बच्चों को पढ़ाने में उसको जो खुशी होती थी, कि पुछो मत। सबने उसकी आँखों के सपनों को पढ़ा था। जो अच्छे दोस्त मिले, उन्होंने उसको शिक्षिका बनने का सुझाव दिया।
आज वो ग्यारह साल से शिक्षिका को अपना साथी बनाकर एक नई पहचान बनाई है। हर रोज कुछ न कुछ सीखा और सिखाती गई सबको। बच्चों से बहुत प्यार करती थी, तो शिक्षिका बन सबकी चहेती बन गई। जब विद्यार्थी उसकी इज़्ज़त अफ़जाई करते हैं, वो सालों पुरानी बात वो शिक्षा अभियान का सोच मुस्कान भर देती है।
सही है, उसने अपने नाम को सार्थक बनाया है। "सीखा" शिक्षा की शीखा बन सबको रोशनी प्रदान करती है। उम्र का ना दीवार, ना जात-पात का प्रभाव। एक अविरल धारा की तरह बह जाती है। सबको नए विचारों से अवगत कराए वो अपने आप को सशक्त करती जाती है।
लोपामुद्रा (सीखा) की यही है कहानी।
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